- सिराज के राज्य रोहन
के बाद उत्तराधिकार के स्पतर पर उसकी मौसी
घसिटी बेगम तथा उसका मौसेरा भाई शौकत जंग ने चुनौती प्रस्तुत किया जिसमें सिराज
शौकत जंग को मनिहारी (1756) के युद्ध में शौकत को पराजित कर मार डाला और
घसिटी बेगम को भी रास्ते से हटा दिया|
राजनीति का स्तर पर अभिरुचि के कारण-
- बंगाल में सिराज
नामक एक नवाब का शासन है जो सैद्धांतिक स्तर पर अपने आप को मुगल शासकों का अधीनरुच
शासक मानता है लेकिन व्यवहारिक स्तर पर स्वतंत्र व स्वायत है
प्रशासनिक और सैन्य स्तर पर-
- तत्कालीन बंगाल प्रशासनिक और सैन्य स्थिति शांति स्वरूप का थी, अर्थात अधिकारियों को
नियुक्ति का आधार योग्यता नहीं, निष्ठा था|
आर्थिक-
- बंगाल का बृहद एवं उर्वर क्षेत्र राजस्व का अच्छा स्रोत था
- बंगाल, क्योंकि समुद्र के तट पर था और इसलिए विदेशी व्यापार के लिए भी युक्त था|
कंपनी का एशियाई
देशों के साथ होने वाला कुल व्यापार 60% भाग बंगाल से प्राप्त होता था|
सामरिक दृष्टिकोण-
- बंगाल में दक्षिण की तरह राजनीतिक प्रतिदंदिता का अभाव है| जैसे मैसूर मराठा निजान ,
फ्रांसीसी कंपनी
आदि का दक्षिणी क्षेत्र में होना|
- चुकी बंगाल समुद्र के तट पर है तो ब्रिटिश नौसेना का आगमन के लिए भी उचित है
ब्रिटिश सरकार की नीति-
- बंगाल में उपजा हुआ उत्तराधिकार के लड़ाई से फायदा उठाना |
- बंगाल को जितना लेकिन धीरे-धीरे |
व्यवहार-
- सिराज के प्रति शिष्टाचार का प्रदर्शन न करना
- सिराज के आदेशों का अवहेलना करते हुए अपनी बस्तियों को किलाबंदी करते रहना|
- व्यापारिक दस्तक का दुरुपयोग करना(दस्तक या व्यापार करने चुंगी मुक्त लाइसेंस
था)
- 1651 में बंगाल का सुविधा शाहशुजा द्वारा 3000 कर के बदले बिहार ,बंगाल, उड़ीसा, में कंपनी को निशुल्क
व्यापार करने की अनुमति प्राप्त हुई थी|
- यह अनुमति केवल कंपनी के लिए तथा विदेशी
व्यापारियों के लिए न की कंपनी के निजी व्यापारियों के लिए और ना ही आंतरिक
व्यापार के लिए |
- ब्रिटिश कंपनी ने नवाब के विरोधियों को नवाब के विरुद्ध संरक्षण देने का काम
किया, जैसे
प्रारंभ में शौकत जंग ,एवं घसीटी बेगम और बाद में नवाब के दरबारियों को -
- मीर जाफर- सेनापति
- राय दुर्लभ- कुलीन वर्ग का व्यक्ति तथा नवाब का सम्मानित व्यक्ति था
- जगत सेठ- साहूकार(बैंकर)
- मानिकचंद- कोलकाता शहर प्रभारी
- अमीचंद- बंगाल का व्यापारी
कंपनी के साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा एवं प्रतिक्रिया नीतियों के कारण नवाब
और कंपनी के बीच संघर्ष अवश्यंभावी हो गया| परिणाम स्वरूप सिराजुद्दौला ने 1756 में कासिम बाजार के ऊपर
आक्रमण कर दिया तथा 20 जून 1756 को कोलकाता भी सिराजुद्दौला के हाथों में आ गया| तत्पश्चात सिराजुद्दौला ने अपना
अधिकारी मानिकचंद के हाथ में कोलकाता को सौंपते हुए अपनी राजधानी वापस लौट गया|
सिराज के कोलकाता पर आक्रमण
के समय कोलकाता का ब्रिटिश गवर्नर ड्रेक ने हुगली नदी मुहाने पर स्थित फुल्टा
द्वीप में अंग्रेजों के साथ शरण ले ली|
20
जून 1756
कोलकाता पर सिराज के आक्रमण के साथ ही BLACK HALE की घटना घटी जिसे काली कोठरी की
घटना कहा जाता है|
इस घटना के अंतर्गत एक छोटे से कमरे में 146
लोगों को बंद कर दिया दूसरे दिन
केवल 23
बच्चे
थे बाकि मर गए थे ,
उसमे एक व्यक्ति था क्लाइव के बाद
बनने वाला गवर्नर हालवेल |
घटनाक्रम का विकास (शेष)
ब्रिटिश कंपनी के बंगाल स्थित वस्तुओं के पतन के बाद क्लाइव एवं वाटसन के नेतृत्व में एक ब्रिटिश सेना बंगाल की ओर उन्मुख हुई और बिना किसी प्रतिरोध के सिराज के दरबारी एवं कोलकाता के प्रभारी मानिकचंद ने कोलकाता को इन अधिकारियों के हाथों में सौंप दिया| तत्पश्चात ब्रिटिश कंपनी और सिराज के बीच फरवरी 1737 में अलीनगर की संधि संपन्न हुई जिसके निम्न बिंदु हैं-
- सिराज ने ब्रिटिश कंपनी द्वारा निर्धारित एक युद्धछति पूर्ति राशि देना स्वीकार किया|
- कंपनी को अपने वस्तुओं का किला बंदी करने का अधिकार प्राप्त हो गया|
- कंपनी को अपने व्यापार संबंधित सभी पुराने अधिकार पुनः प्राप्त हो गए
- कंपनी को ब्रिटिश टक्सालो में डाले जाने वाली सिक्को को बंगाल में भी संचालित करने का अधिकार प्राप्त हो गया|