रैयतवाड़ी व्यवस्था
रैयतवाड़ी= रैयत (कृषक)+वाड़ी(बंदोबस्त)
रैयतवाड़ी
दो
शब्दों के मेल से बना है, जिसमें
रैयत का आशय है, किसान एवं वाड़ी
का
आशय है, प्रबंधन अर्थात किसानों के साथ प्रबंधन दूसरे शब्दों में रैयतवारी
व्यवस्था ब्रिटिश कंपनी द्वारा प्रचलित एक ऐसी
व्यवस्था है जिसमें राज्य या सरकार
किसानों के साथ प्रत्यक्ष तौर पर भू राजस्व का
प्रबंधन करती है
कहां
मद्रास, बंबई, आसाम, एवं
सिंध का क्षेत्र, में यह व्यवस्था प्रचलित थी|
अर्थात
भारत में ब्रिटिश सम्राज्य के कुल भूभाग के
51% भूमि पर यह व्यवस्था लागू थी|
किसके द्वारा
रीड(अधिकारी
है), मुनरो ,और एलफिस्टन द्वारा|
क्यों
रैयतवाड़ी
व्यवस्था के प्रचलन के संदर्भ में मूल रूप से दो विचारधाराएं प्रस्तुत की जाती है
पूंजीवादी विचारधारा
उपयोगितावादी विचारधारा
स्मरणीय है, कि
रैयतवाड़ी व्यवस्था के पीछे सबसे अधिक पूंजीवादी विचारधारा तथा
पूंजीवादी विचारधारा का मानवीय चेहरा उपयोगितावादी विचारधारा मुख्य तौर पर
जिम्मेदार था|
पूंजीवादी विचारधारा का मानवीय चेहरा उपयोगितावादी विचारधारा मुख्य तौर पर
जिम्मेदार था|
इस विचारधारा का केंद्रीय मान्यता था की भूमि के
ऊपर उस वर्ग का स्वामित्व
होना चाहिए|
होना चाहिए|
जो
उस भूमि में अपना श्रम लगाकर फसलों का उत्पादन करता है और यही
वजह है,की अर्थशास्त्री रिकार्डो के सिद्धांत से प्रभावित होकर जमींदारों को
वजह है,की अर्थशास्त्री रिकार्डो के सिद्धांत से प्रभावित होकर जमींदारों को
गैर उत्पादक वर्ग मानते
हुए किसानों को ही भूमिका मालिक स्वीकार किया
गया |
इस पद्धति के
तहत किसानों के साथ भू राजस्व कर निर्धारण भी रिकार्डो
के सिद्धांत पर ही
के सिद्धांत पर ही
आधारित
था| जैसे:-
कुल उत्पादन- किसान
का कुल लागत= शेष
और
उस शेष पर राज्य एवं किसानों के बीच फसल से प्राप्त आय का बंटवारा|
विशेषता
- इस पद्धति में भूमि का मालिकाना हक किसानों के पास था |
- भूमि को क्रय विक्रय एवं गिरवी रखने की वस्तु बना दी गई|
- इस पद्धति में भू राजस्व का दर वैसे तो 1/3 होता था,
लेकिन
उसकी वास्तविक वसूली ज्यादा थी|
- इस पद्धति में भू-राजस्व का निर्धारण भूमि के उपज पर ना
करके
भूमि पर किया जाता था|
- इस पद्धति में भी सूर्यास्त का सिद्धांत प्रचलित था|
इस पद्धति का प्रभाव
1.भू राजस्व का निर्धारण भूमि के उत्पादकता पर न करके भूमि पर किया गया,
जो
किसान के हित के लिए सही नहीं था|
2.इस पद्धति में भू राजस्व
कदर इतना ज्यादा था कि किसान के पास अधिशेष नहीं बसता था|
परिणाम स्वरुप किसान महाजनों के चंगुल में फसते गए और इस तरह यहां पर
महाजन ही
एक
कृत्रिम जमीदार के रुप में उभर कर आने लगे|
3.इस व्यवस्था ने दोषपूर्ण
राजस्व व्यवस्था के कारण किसानो के पास इतना अधिशेष नहींबसता था |
जोकि वह कृषि में उत्पादकता बढ़ाने के लिए निवेश
कर सके, परिणाम स्वरुप किसान
क्रमशः गरीबी दरिद्रता आदि के कुचक्र में फसते
गए|
4.यद्यपि इस व्यवस्था में
फसलों के वाणिज्यिकरण प्रोत्साहन प्राप्त हुआ, लेकिन इसका भी लाभ
किसानों
को प्राप्त नहीं हो पाया| यह लाभ सौदागर सरकार एवं महाजन को प्राप्त हो
गया|
सब मिलाकर रैयतवारी व्यवस्था अस्थाई बंदोबस्त के
सापेक्ष निसंदेह एक प्रगतिशील कदम था,
लेकिन विद्यमान ढांचा साम्राज्यवादी था| जिसका
केंद्रीय उद्देश्य था,
"
भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण करना|
"
for more click hereमहालवाड़ी व्यवस्था
इससे जुड़े प्रश्न
उपयोगितावाद का के विचारधारा को अस्पष्ट करें! रैयतवाड़ी व्यवस्था
उपयोगितावाद के विचारों
को कहां तक अभिव्यक्ति प्रदान करती है ?
or
क्या
आप सहमत हैं, की रैयतवाड़ी व्यवस्था में उपयोगितावाद के
विचारधारा को लागू करने का
दवा एक छलावा था ?
Very useful for all hindi medium upsc/uppsc aspirations. (For mains history)
ReplyDeletethanku
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