click on any topics
1. भू राजस्व पद्धति, 2. कृषि का वाणिज्यिकरण3. भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों का विनाश 4. भारतीय भारतीय धन का निष्कासन5. भारत में रेलवे का विकास6. भारत में आधुनिक उद्योगों का विकास
7. भारत में अकाल[vvi]
ब्रिटिश काल में भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों का विनाश
हस्तशिल्प उद्योग का आशय कैसे शिल्प से है जो कारीगरों के हाथों के हुनर पर आधारित होता है, यह एक व्यक्ति के कलात्मक प्रतिभा का परिचायक होता है| भारत में अंग्रेजों के आने के पहले नगर एवं ग्रामीण स्तर पर हस्तशिल्प उद्योग का एक समृद्ध परंपरा विद्यमान था,जिसका मांग यूरोपीय देशों में भी अधिक था ,लेकिन यह परंपरा ब्रिटिश सरकार के स्थापना के प्रक्रिया में धीरे धीरे लुप्त होता गया, और इस प्रक्रिया को विऔद्योगिकरण की प्रक्रिया कहां जाता है, "अन औद्योगिकरण" के नाम से भी जाना जाता है|
सवाल यह है कि इस प्रक्रिया के लिए कौन जिम्मेदार है?
1.1757 में ब्रिटिश कंपनी द्वारा प्लासी विजय के बाद बंगाल में राजनीतिक सत्ता पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित हो गया, जो क्रमशः बढ़ता गया, ब्रिटिश कंपनी ने अपनी राजनीतिक सत्ता का प्रयोग अपने अपनी औपनिवेशिक आर्थिक हितों के मध्यनजर करना शुरु किया और इससे क्रम में वह देशी बुनकरों के ऊपर अपना नियंत्रण आरोपित करते हुए, उनके काम की आजादी, उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं के मूल्य निर्धारण करने का अधिकार को छीन लिया, और इस तरह भारत में देशी बुनकर उद्योग को समाप्त होने के कगार पर ला दिया|2. ब्रिटेन में होने वाली औद्योगिक क्रांति ने भारतीय परंपरागत हस्तशिल्प उद्योग को गहरा चोट पहुंचाया, क्योंकि इस क्रांति के बाद ब्रिटिश उद्योगों के लिए भारत से कच्चा माल का निर्यात होने लगा और पुनः ब्रिटेन में निर्मित वस्तुओं के लिए भारत को एक बाजार किया जाने लगा| जो कि भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों के विकास के लिए सकरात्मक नहीं था|
3.ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के क्रम में एक सशक्त मध्य वर्ग उभर कर आया, और उसी मध्य वर्ग के दबाव में भारत में 1813 के अधिनियम के माध्यम से मुफ्त बाजार की नीति एक ऐसे समय में लागू किया गया, जब भारतीय परंपरागत हस्तशिल्प उद्योग अपना दम तोड़ रही थी|
4. भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों के विनाश में औपनिवेशिक सरकार की प्रशुल्क नीति भी केंद्रीय भूमिका निभाया, जैसे:- भारत से ब्रिटेन में आयात होने वाले वस्तु पर भारी आयात कर लगाना, जबकि ब्रिटेन से भारत में आयात होने वाले वस्तुओं के ऊपर या तो कोई कर नहीं लगाना, या संकेतिक कर लगाना| यह असंगत प्रशुल्क नीति केवल साम्राज्यवादी सरकार के आर्थिक हितों को ही प्रोत्साहित कर सकती थी|
5. स्मरणीय है ,कि उपयोगितावाद एवं आधुनिकीकरण के नाम पर आधुनिक शिक्षा को प्रारंभ करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य भी साम्राज्यवादी था, क्योंकि इस शिक्षा के माध्यम से ब्रिटिश कंपनी परंपरागत भारतीय समाज के स्वरूप में परिवर्तन लाना चाहती थी| ताकि ब्रिटिश उत्पादित वालों के लिए एक अनुकूल बाजार प्राप्त हो सके|
रेलवे का विकास
रेलवे का विकास आधुनिक संचार साधन के रूप में एक सकारात्मक कदम था, लेकिन रेलवे के द्वारा संचार के क्षेत्र में उत्पन्न संचार के क्षेत्र में गतिशीलता ने भारतीय हस्तशिल्प की प्रक्रिया को त्वरित[ तेज] कर दिया|देशी राज्यों की समाप्ति
भारतीय देशी राज्य भारतीय परंपरागत हस्तशिल्प उद्योग का संरक्षक भी थे, और उत्पादक वित्त है लेकिन अंग्रेजों के विस्तारवादी नीतियों के कारण इन देशी राज्यों का अस्तित्व ही समाप्त हो गए परिणाम स्वरुप संरक्षण एवं बाजार के अवसर पर भारतीय हस्तशिल्प उद्योग अपने देश में भी वंचित हो गए|भारतीय परंपरागत उद्योग के विनाश के लिए जिम्मेदार
> इस संदर्भ में दो तरह के विचारधारा प्रचलित है<
HISTORICAL DEBATE
1. साम्राज्यवादी [MORRIS DE MORRIS]2. राष्ट्रवादी
1. साम्राज्यवादी इतिहासकार मौरिस डी मोरिस का कहना है, की भारतीय हस्तशिल्प उद्योग के विनाश में ब्रिटेन का कोई भूमिका नहीं है, इसके लिए भारतीय अर्थव्यवस्था ही जिम्मेदार है| मौरिस डी मोरिस का कहना है कि हाथों के हुनर पर आधारित शिल्प
उद्योगों का विकास का एक अलग बात है, और विज्ञान एवं तकनीक के आधार पर औद्योगिक विकास एक अलग तथ्य है और दूसरे कारक भारतीय अर्थव्यवस्था में विद्यमान नहीं था, और इसलिए प्रतिस्पर्धा में भारतीय उद्योग पिछड़ गए एवं उनका विनाश हो गया|
2. इसके समानांतर राष्ट्रवादी विचारकों का कहना है, कि भारतीय उद्योग के विनाश में ब्रिटिश सरकार की प्रत्यक्ष भूमिका थी, ब्रिटिश सरकार की प्रशुल्क नीति ,उसका औद्योगिक नीति, भारतीय अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप की नीति, इस तथ्य को रेखांकित करती है कि औपनिवेशिक सरकार का मुख्य उद्देश्य था भारतीय अर्थव्यवस्था को ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के अधिनस्थ बनाना अर्थात भारत को ब्रिटिश उद्योगों के लिए कच्चे माल का सप्लायर[ उत्पादक] एवं उनके द्वारा ब्रिटिश उत्पादित वस्तुओं के लिए बाजार के रूप में तब्दील करना|
हस्तशिल्प उद्योगों के विनाश का प्रभाव
1.भारतीय परंपरागत उद्योगों का विनाश तथा उसके स्थान पर किसी नवीन उद्योगों की स्थापना ना होने बेरोजगारी की समस्या|2.शहरों के पतन होने लगे|
3.और गांव की ओर इन शिल्पकारों का मुड़ना शुरू हो गया, जिसके परिणाम स्वरुप ग्रामीण कृषि पर और दबाव बढ़ गया|
4.हस्तशिल्प उद्योगों के विनाश ने कृषि सिल्क एवं उद्योग के बीच के जैविक संबंध को तोड़ दिया|
यहां उल्लेखनीय है कि हस्तशिल्प उद्योगों के विनाश में ज्यादातर नगर यह हस्तशिल्प उद्योग ही प्रभावित हुए, ग्रामीण स्तर पर विकसित होने वाले हस्तशिल्प उद्योग के ऊपर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा|
प्रश्न है कि ग्रामीण हस्तशिल्प उद्योग क्यों बच गए अर्थात क्यों ज्यादा प्रभावित नहीं हुए.??
उत्तर:- ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की अभिरुचि ,सोच ,रहन-सहन, अभी भी भारतीय परंपरा से ज्यादा प्रभावित था,यानी कि पश्चिमी मूल्यों का प्रभाव उनके जीवन पर ज्यादा नहीं पड़ा|भारत में परंपरागत ग्रामीण व्यवस्था में जजमानी पद्धति का विशेष महत्व था| जजमानी का आशय है, वस्तु विनिमय के माध्यम से एक दूसरे के आवश्यक्ताओं को आपूर्ति करना| और इसलिए भी ग्रामीण क्षेत्र के निवासी औपनिवेशिक बाजार से पृथक रहे| ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के अभिरुचि एवं आवश्यक्ताओं के मध्य नजर ब्रिटेन में वस्तुओं का उत्पादन नहीं होता था ,और इसीलिए भी ग्रामीण बाजार कुछ हद तक गांव में रहने वाले लोगों के लिए या ग्रामीण लोगों के लिए सुरक्षित रह पाया|
Sir please write down some point of given question so that answer will be perfect
ReplyDeleteokkk
DeleteThanks sir
Deleteबहुत अच्छा
ReplyDeletethanku .....
DeletePls tell me answer
ReplyDeleteokk i will provide you,give me your email add
DeleteSir es question ka or point bn skta h kya plzzzz answer sir
ReplyDeleteNice ans
ReplyDelete