भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश साम्राज्यवादी का नीतियों का प्रभाव

भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश साम्राज्यवादी का नीतियों का प्रभाव


1. भू राजस्व पद्धति2. कृषि का वाणिज्यिकरण3. भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों का  विनाश  4. भारतीय भारतीय धन का निष्कासन5. भारत में रेलवे का विकास6. भारत में आधुनिक उद्योगों का विकास 7. भारत में अकाल[vvi]


1. ब्रिटिश सरकार की भू राजस्व की नीति:-


सबसे पहले यह देखना होगा

भू राजस्व नीति क्या है

ब्रिटिश काल में भू राजस्व के विभिन्न प्रचलित पद्धतियां
[i] स्थाई बंदोबस्त या जमीनदारी व्यवस्था
[ii]  रैयतवाड़ी व्यवस्थाCLICK HERE
[iii] महालवाड़ी व्यवस्थाCLICK HERE

भू राजस्व पद्धति= राजस्व, राजा+अश्व(संधि विच्छेद)

  स्थाई बंदोबस्त की पद्धति

    क्या है              
    कब              
    किसके द्वारा
    कहां
    कितने वर्ष के लिए
    किस के साथ



 क्या है     

स्थाई बंदोबस्त का तात्पर्य है, की भू-राजस्व को अल्पकालिक अवधि के स्थान पर दीर्घकालिक
 अवधि के लिए बंदोबस्त करना या निश्चित करना|

 कब     

1790 में पहले 10 वर्ष के लिए और 1793 में स्थाई बनाया गया|

 किसके द्वारा

बंगाल का गवर्नर जनरल लार्ड कार्नवालिस के द्वारा

 कहां

बंगाल, बिहार, उड़ीसा एवं उत्तर प्रदेश के वाराणसी का क्षेत्र| जो कि भारत में ब्रिटिश सम्राज्य
 के कुल भूभाग का 19%

कितने वर्ष के लिए

पहले 10 वर्ष के लिए फिर दीर्घकालिक वर्ष|

 किस के साथ

जमींदारों के साथ अर्थात किसानों को उनके भूमिका मालिक ना मन कर, जमींदारों को
 भू-स्वामी स्वीकार किया गया| और उसी के साथ भू राजस्व का बंदोबस्त किया गया|

स्थाई बंदोबस्त ही क्यों ???


[i] व्यवहारिक विचारधारा
इसके माध्यम से राज्य को अपना आय का रूपरेखा प्राप्त हो जाएगा, की कितना हमारे
 राज्य से पैसा आता है|
किसानों को पता रहेगा उन्हें कितना भू राजस्व लौटाना  है|
जमींदारों को भी सूचना रहेगा कि उन्हें कितना वसूल करना है और उन्हें उनमें से
 कितना राज्य को देना है|
इसके माध्यम से राज्य को अपने नीतियों की प्रतिपादन करने के लिए सहूलियत प्राप्त होगी|

इस विचारधारा का खंडन

सबसे पहले बात तो यह है, की राज्य का अपना आय एवं व्यय का सूचना प्राप्त करना उचित है|
किसानों द्वारा राज्य को कितना राजस्व देना है, इसका निर्धारण भी उचित है लेकिन जमींदारों के
 आमदनी को निश्चित करना उचित नहीं है, क्योंकि इसमें केवल सरकार और किसान का ही हित
 एवं कामदानी का मुद्दा महत्वपूर्ण पक्ष है|

  कुछ विद्वानों ने स्थाई बंदोबस्त के पीछे बंगाल में प्रचलित परंपरा का तर्क प्रस्तुत किया की
 अंग्रेजों के आने से पहले ही बंगाल में भूमिका मालिक जमीदार थे और इसलिए उसी परंपरा को
 अनुपालन करते हुए ब्रिटिश सरकार ने भी जमींदारों को भूमिका स्वामी स्वीकार करते हुए उनके
 साथ ही भू राजस्व का स्थाई बंदोबस्त कर दिया|

इस विचारधारा का खंडन

इस तर्क में सबसे बड़ी कमजोरी तो यह है, की बंगाल में जमींदार वर्ग कभी भी भूमिका स्वामी नहीं था|
 उसका कार्य केवल भू राजस्व का वसूली करना तथा उसे राज्य को सपना था| और इसके बदले में राज्य
द्वारा जमींदारों को कुछ प्रतिशत पारिश्रमिक ग्रुप में धन प्रदान किया जाता था| दूसरे शब्दों में ब्रिटिश
 सरकार ने इस परंपरा को पालन करने के स्थान पर अपनी साम्राज्यवादी हित में एक नई परंपरा पर डाली|

प्रतिक्रियावादी विचारधारा

इस विचारधारा का केंद्रीय मन्यता यह है कि, कृषि क्रांति को लाने के लिए भूमि का मालिक या भूमि के
 स्वामित्व उसके हाथों में सौंपा जाए जो उसमें निवेश करने की क्षमता रखता है| इसी विचारधारा से
प्रभावित होकर कार्नवालिस ने जमींदारों को ही भूमिका मालिक स्वीकार कर लिया| लेकिन यहां भी
 कार्नवालिस के नीति में एक कमजोर पक्ष उजागर होता है| भारत में जमींदार वर्ग भूमि का मालिक
 नहीं था, वह केवल राज्य की ओर से भू राजस्व का वसूली करने वाला था|
इंग्लैंड की जमींदारों वर्ग की तरह उद्यमशीलता का विचार नहीं था| और इसलिए इनके माध्यम से
कृषि क्रांति की कल्पना करना आश्चर्यजनक प्रतीत होता है |

राजनीतिक एवं प्रशासनिक आवश्यकता

स्थाई बंदोबस्त के व्यवस्था के पीछे ब्रिटिश सरकार की राजनीतिक एवं प्रशासनिक आवष्यकताओं
 के प्रभाव को भी स्वीकार किया जाता है, क्योंकि जमींदारों को भूमिका मालिक स्वीकार करके
 ब्रिटिश सरकार ने उनके हितों को कंपनी के हितों से जोड़ दिया| अब जमींदार राजनीतिक
 स्तर पर ब्रिटिश कंपनी के मित्र हो गए एवं सहयोगी हो गए| अब उनका अस्तित्व ब्रिटिश
 सम्राज्य के अस्तित्व से जुड़ गया| वही प्रशासनिक स्तर पर भी स्थाई बंदोबस्त के माध्यम
से ब्रिटिश कंपनी को यह लाभ प्राप्त हुआ कि उन्हें अपने दक्ष अधिकारियों को भू राजस्व
के निरंतर वसूली से हटाकर प्रशासनिक कार्यों में नियोजित करने का अवसर प्राप्त हुआ|

स्थाई बंदोबस्त की मुख्य विशेषताएं

इस पद्धति में या इस बंदोबस्त में राजस्व का निर्धारण भूमि के उपज के आधार पर न
 होकर भूमि पर किया गया|
भूमि को क्रय विक्रय एवं गिरवी रखने का वस्तु बना दिया|
इसमें किसानों के स्थान पर जमींदारों को भूमि का मालिक माना गया|
इस पद्धति में सरकार में अपना राजस्व में हिस्सा 89% जबकि11% पर
जमीदारों का हक था| जबकि किसानों का अंश को परिभाषित नहीं किया गया|
इस पद्धति में सूर्यास्त के सिद्धांत को लागू किया गया| जिसके तहत यदी कोई जमींदार
 निर्धारित तिथि तक अपना राज्य द्वारा निर्धारित राजस्व के अंश को जमा नहीं करता है
 तो उसके जिम्मेदारी को नीलाम कर दिया जाता था|

स्थाई बंदोबस्त के लाभ

सरकार का आयोजन निश्चित एवं निरंतर हो गई ,आर्थिक स्तर पर बढ़ोतरी हो गई|
राजनीतिक स्तर पर जमींदार वर्ग ब्रिटिश सरकार के हितैषी बन गए|
स्थाई बंदोबस्त हो जाने से ब्रिटिश कंपनी के प्रशासनिक अधिकारियों को अन्य प्रशासनिक
 क्षेत्रों में नियोजित करने में सुविधा प्राप्त होगी क्योंकि पहले यह अधिकारी भू राजस्व की
 वसूली में संलग्न रहा करते थे|

स्थाई बंदोबस्त की हानि

यदि स्थाई बंदोबस्त की व्यवस्था को, भारतीय किसानों के नजरिए से देखा जाए, तो
 यह कई स्तरों पर नकरात्मक प्रभाव डालती है
a. इस पद्धति ने किसानों को उनके परंपरागत अधिकारों से वंचित कर दिया|
 अर्थात उसे भूमि को छीन कर उसका स्वामित्व को  जमींदारों के हाथों में दे दिया गया|
b. भूमि को क्रय विक्रय वस्तु बना देने से भूमि में विखंडन की अवस्था उत्पन्न होने लगी|
c. इस पद्धति में कृषि क्रांति की मन्यता भी दोषपूर्ण साबित हुई| क्योंकि किसानों के पास
 अधिशेष का अभाव था और इसलिए उनके द्वारा निवेश संभावना नहीं था| जबकि दूसरी
 ओर जमींदारों का निवेश में कोई अभिरुचि ही नहीं था|
                         संक्षेप में स्थाई बंदोबस्त के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को तत्कालिक
 आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ लेकिन भारतीय कृषि एवं किसानों के लिए यह बिलकुल
 हानिकारक एवं अविवेकपूर्ण साबित हुआ|


इससे जुड़े प्रश्न


क्या आप सहमत हैं कि स्थाई बंदोबस्त की पद्धति कार्नवालिस साहसिकता बुद्धिमता एवं व्यवहारिकता का परिणाम था..?


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