Polity Notes (Part 5) भारतीय संघ की नवीन प्रवृतियां

New Trends of Indian Federalization [1950-2016]

भारतीय संघ की नविन प्रवर्तिया

भारत की भौगोलिक व सामाजिक स्थितियों को लेकर संविधान निर्माताओं ने भारत की लिए जिस संघीय संविधान का निर्माण किया, उस संघीय संविधान के अनुसार जिस राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना की गयी, उस राजनीतिक व्यवस्था के कार्यप्रणाली का समय 6 दशको से अधिक समय का विशलेषण किया जाये तो भारतीय संघ का स्वरुप एक सामान दिखाई नहीं पड़ता बल्कि समय व परिस्तिथियों के अनुसार उसमें परिवर्तन आता गया| यह परिवर्तन निम्न रूपों में दिखाई पड़ता है –

1 केन्द्रीयकृत संघवाद

2 सहकारी संघवाद

3 सौदेबाजी का संघ

4 गठबंधन सरकार और भारतीय संघ

5 नियोजन & भारतीय संघ

6  भूमंडलीकरण व भारतीय संघ

केन्द्रीयकृत संघवाद –

1963 – > West Bengal v/s Indian Union

S.C. -> Indian Constitution is no federal constitution

भारत को उपनिवेशवाद से मुक्ति एक लम्बे समय के पश्चात मिली| इस लम्बे संघर्ष को राष्ट्रीय आंदोलन कहा गया, यह आंदोलन कांग्रेस के नेतृत्व में लड़ा गया जिसके परिणाम स्वरुप भारतीय जनता में कांग्रेस के प्रति विश्वास और आस्था भी थी | अतः लगभग दो दशको तक [1950 – 1967]  जितने भी चुनाव होते थे , उन सभी चुनाओ मे भारतीय जनता का समर्थन कांग्रेस को प्राप्त था, जिसके परिणाम स्वरुप केंद्र व राज्य दोनों स्थानो पर कांग्रेस की सरकारे स्थापित होती थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी की एक परंपरा रही है, कि कांग्रेस पार्टी में हमेशा केंद्रीय नेतृत्व को प्रमुखता दी गयी है, या क्षेत्रीय नेतृत्व के पास इतना सहस नहीं था की केंद्रीय नेतृत्वों के दिए गए निर्देशो का विरोध कर सके| ऐसी स्थिति में केंद्र व राज्य के बीच कोई विवाद उत्पन्न होता ही नहीं था और यदि कोई विवाद उत्पन्न भी होता है , तो उस विवाद को केंद्र व राज्य का विवाद न कहकर ये कहा गया कि यह कांग्रेस पार्टी का अपना आंतरिक विवाद है | ऐसी स्थति में भारतीय संघ का स्वरुप केन्द्रीयकृत दिखाई पड़ता है | इन्ही परिस्थितियों में जब उच्चतम न्यायलय के समक्ष पश्चिम बंगाल बनाम भारत संघ १९६३ का मामला आया, तो उच्चतम न्यायलय ने यह निर्णय दिया की भारत का संविधान एक संघीय संविधान नहीं है |

2 सहकारी संघवाद – भारतीय संविधान का निर्माण इस उद्देश्य को लेकर किया गया था कि भारत के परम्परागत समाज के स्थान पर एक नवीन भारतीय समाज की स्थापना की जाये | इसीलिये प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. अम्बेडकर ने भारतीय संविधान को लागू करते समय यह विचार दिया था कि इस संविधान को लागू करके ” हम सामाजिक, आर्थिक विषमताओं से भरे हुए युग में प्रवेश करने जा रहे है ” जब तक समाज में इस सामाजिक, आर्थिक विषमताओं का अस्तित्व बना रहेगा तब तक संविधान द्वारा स्थापित राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकेगी | इसलिए संविधान द्वारा स्थापित राजनीतिक व्यवस्था का मुख्या दायित्व समाज में विघमान सामाजिक, आर्थिक विषमताओं को दूर करना है | लेकिन संविधान इस दायित्व को किसी एक सरकार को नहीं सोपता बल्कि यह दायित्व संघीय संविधान की दोनों सरकारों को सोपा जाता है | इसलिए इन दायित्वों की पूर्ति तभी हो सकेगी जब दोनों सरकारों के मध्य सहयोग और समन्वय हो | दोनों सरकारों के मध्य व समन्वय की स्थापना के लिए संवेधानिक संस्था के रूप में नियंत्रक महालेखा परिक्षक [148] राज्यपाल [153], नदी जल वोट प्राधिकरण [262], अन्तराज्यीय परिसर [263], विन्त आयोग [280] तथा अखिल भारतीय सेवा [312] जैसी संस्थाओ की स्थापना की गई | लेकिन दूसरी और संविधानेत्तर के रूप में योजना आयोग जिसे 2015 में परिवर्तित करके नीति आयोग कर दिया गया | राष्ट्रीय विकास परिषद तथा क्षेत्रीय परिषद की स्थापना की गई |

2014 के आम चुनाव के पश्चात भारतीय राजनीति में लगभग तीन दशक के बाद एक परिवर्तन आया, जब किसी एक  राजनीतिक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ | इस सरकार ने लगभग 6 दशको से चली आ रही नियोजन पद्धति को समाप्त करके नीति आयोग को स्थापना की है | नीति आयोग का गठन जिस प्रकार से किया गया तथा राज्यों को जो भागीदारी दी गई उसे भारत में सहकारी संघवाद की स्थापना होती है | अतः वर्तमान परिपेक्ष में सरकार अपने विकास के लक्ष्यों को केंद्र और राज्य के सहयोग से प्राप्त करना चाहती है | इन सभी स्थितियों को लेकर भारतीय संघ के सम्बन्ध में प्रमुख राजनीतिक विचारक ग्रेनविल्ड ऑस्टिन का विचार उपयुक्त दिखाई पड़ता है कि भारतीय संघ  सहकारी संघवाद की स्थापना करता है |

3)  सौदेबाजी का संघ –

90 के दशक के अंतिम वर्षो में भारतीय राजनीति में एक परिवर्तन दिखाई पड़ता है | इस परिवर्तन का मुख्य कारण यह था कि किसी भी राजनीतिक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है ऐसी स्थिति में राज्यों के क्षेत्रीय दलों के सहयोग से केंद्र में मिली-जुली सरकार स्थापित होती है, राज्यों के क्षेत्रीय दल समर्थन के बदले मंत्री परिषद में महत्वपूर्ण मंत्रालयों की मांग करते है | साथ ही साथ केंद्र सरकार पर ऐसा दबाव डालते है कि उनके संकीर्ण राजनैतिक हितो की पूर्ति हो सके | उनकी मांगो के पूरा न होने की स्थिति में समर्थन वापसी की धमकी भी देते है जिसके कारण उनकी स्थिति हमेशा सौदेबाजी (कमजोर) की बनी रहती है | इसी स्थिति को लेकर ब्रिटिश विचारक मौरिश जॉन्स ने यह विचार दिया किया भारतीय संघ सौदेबाजी की स्थापना करता है |

4) गठ बंधन सरकार और भारतीय संघ –

गठबंधन सरकारों के युग में यदि भारतीय संघ के स्वरूप का विश्लेषण किये जाये, तो  भारतीय संघ का स्वरूप निश्चित नहीं दिखाई पड़ता है, बल्कि समय और परिस्थितियों के अनुसार कभी भारतीय सहकारी संघवाद के रूप में, तो कभी सौदेबाजी संघ के रूप में परिवर्तित होता रहता है |

क्योकि क्षेत्रीय दलों के सहयोग के बिना गठबंधन सरकारों का निर्माण संभव नही है | क्योकि बिना सहयोग के गठबंधन का निर्माण होगा ही नही | इसलिए गठबंधन के सरकारों के समय के संघ की प्रवत्ति सहकारी संघवाद की होगी | यह गठबंधन तब तक अस्तित्व में बना रहेगा जब तक समर्थन देने वाले हितो की पूर्ति होती रहेगी, लेकिन जैसे ही उनके हितों की पूर्ति होना बंद हो जाती है, वैसे ही वह समर्थन देना भी बंद कर देते है और सरकार गिर जाती है | सरकार के गिरने के समय संघ का स्वरूप सौदेबाजी का हो जाता है अतः गठबंधन सरकारों के युग में सरकार का स्वरूप निश्चित नहीं दिखाई पड़ता |

1 comment:


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